मुंगेली —– नगर में विगत नौ दिनों से चल रही श्री शिव महापुराण कथा का आज नवां दिवस विश्राम का रहा, जो आध्यात्मिकता, भक्ति और ज्ञान के अद्भुत संगम के रूप में संपन्न हुआ। कथा का सफल आयोजन मुख्य यजमान मिथिलेश केशरवानी एवं श्रीमती कनक केशरवानी के संकल्प, अथक प्रयास एवं शिव भक्ति के प्रति समर्पण का प्रतीक बनकर उभरा।
आज के दिन का वातावरण इतना भावविभोर और भक्तिमय रहा कि कथा स्थल पर उपस्थित हर श्रोता के मुख से एक ही स्वर सुनाई देता रहा — “ऐसा शिव महापुराण पहले कभी नहीं सुना, आत्मा तृप्त हो गई।” कार्यक्रम में नगर व आसपास के गांवों से हजारों की संख्या में शिव साधक उपस्थित हुए। भक्तों की अपार भीड़ और गूंजते “ॐ नमः शिवाय” के जाप से पूरा पंडाल आध्यात्मिक ऊर्जा से भर गया।
गिरी बापू जी द्वारा कथावाचन के दौरान आज विशेष रूप से 12 ज्योतिर्लिंगों की महिमा का संक्षिप्त रूप में वर्णन किया गया। उन्होंने कहा कि “कोई भी भगत किसी भी अवस्था में ‘ॐ नमः शिवाय’ का जाप कर सकता है। यह मंत्र साधक को मोक्ष की ओर ले जाने वाला महामंत्र है।” कथा में भगवान श्रीराम द्वारा बालू से शिवलिंग निर्माण कर रामेश्वर ज्योतिर्लिंग की स्थापना की घटना का उल्लेख कर भक्तों को भावविभोर कर दिया गया।
आचार्य ने कहा कि जो भी भक्त सच्चे मन से शिव की उपासना करता है, वह मुक्त आत्मा होता है। उन्होंने मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की कथा में बताया कि किस प्रकार भगवान कार्तिकेय ने वहां तप किया। फिर महाकाल की महिमा का बखान हुआ और कहा गया कि “महादेव जो भी देते हैं, वह चिरस्थायी होता है, परंतु महादेव को पाने के लिए श्रद्धा और कर्म चाहिए। टोटकों से शिव प्रसन्न नहीं होते।”
बाणासुर और रावण की भक्ति की कथा का वर्णन करते हुए बताया गया कि किस प्रकार बाणासुर ने महादेव से 1000 भुजाओं का वरदान माँगा। उसने कहा कि “यदि दो हाथों से आप इतना दे सकते हैं, तो एक हजार हाथों से क्या नहीं दे सकते?” पंचकेदार की कथा के अंतर्गत तुंगनाथ, जो धरती का सबसे ऊँचाई में स्थित शिव मंदिर है, और त्र्यंबकेश्वर महादेव जो ब्रह्मा, विष्णु और शंकर का प्रतीक है – इनकी महत्ता को बड़े ही सरल और भावपूर्ण ढंग से प्रस्तुत किया गया।
सुधर्मा महादेव की कथा के माध्यम से उन्होंने यह स्पष्ट किया कि भक्ति केवल माँगने के लिए नहीं होनी चाहिए, अपितु आत्म समर्पण के भाव से करनी चाहिए। कथा के अंतिम चरण में उन्होंने सभी श्रद्धालुओं से आव्हान किया कि “भगवान से पहले अपने देश से प्रेम करें, देश सेवा करें। जीवन में दो कार्य अवश्य करें – रक्तदान करें और मतदान करें।”
इस पूरे भव्य आयोजन को सफल बनाने में दीनानाथ केशरवानी, संतोष केशरवानी, आनंद केशरवानी एवं नवीन केशरवानी का विशेष योगदान रहा। उन्होंने समस्त नगरवासियों, सेवा समितियों, यजमान परिवार, स्वयंसेवकों एवं श्रोताओं को धन्यवाद देते हुए कहा कि “यह कार्यक्रम नगर के सामाजिक और आध्यात्मिक जीवन में एक नई ऊर्जा का संचार करेगा।”
गिरी बापू जी ने मंच से मुंगेली नगरवासियों को खुले मन से आशीर्वाद देते हुए कहा कि “आप सभी का प्रेम, भक्ति और सेवा भाव देखकर मुझे अत्यंत प्रसन्नता हुई। यही शिव भक्ति की सच्ची मिसाल है। केशरवानी परिवार के प्रयासों से ही यह शिव कथा समस्त नगरवासियों के लिए सुलभ हो सकी।”
कथा स्थल से निकलते समय श्रद्धालु श्रद्धा और संतोष के भाव से भरपूर दिखाई दिए। महादेव की भक्ति और कथा का प्रभाव उनके मन, वाणी और व्यवहार में स्पष्ट रूप से झलकता रहा। यह आयोजन केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं था, बल्कि संपूर्ण समाज को एकता, सेवा और अध्यात्म के सूत्र में पिरोने का सफल प्रयास था।






















































