मुंगेली सपने जैसी रह गई रेल लाइन: 11 दशक पहले स्वीकृत रेल प्रोजेक्ट अब भी अधूरा, नागरिकों में बढ़ रहा असंतोष

मुंगेली— अंग्रेजों के ज़माने में वर्ष 1917 में स्वीकृत उसलापुर-मुंगेली-कवर्धा-डोंगरगढ़ रेल लाइन का सपना आज भी अधूरा है। इस महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट के लिए तब भूमि अधिग्रहण तक कर लिया गया था, लेकिन अब 11 दशक बीतने के बाद भी यह योजना धरातल पर उतर नहीं सकी है। पूर्ववर्ती भाजपा सरकार ने वर्ष 2016 के रेल बजट में इस रेल लाइन के निर्माण की घोषणा की थी और करीब 5950.47 करोड़ रुपये का बजट अनुमानित किया गया था। इसके बाद 2024-25 के प्रदेश बजट में 300 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया, बावजूद इसके अब तक कोई ठोस कार्यवाही नहीं हो सकी है।

जनता को मिला सिर्फ आश्वासन

स्थानीय नागरिकों और जनप्रतिनिधियों की मानें तो हर बार घोषणाएं तो होती हैं, लेकिन अमल शून्य ही रहता है। वर्षों से यह रेल प्रोजेक्ट केवल कागज़ों पर सिमटा हुआ है। यहां तक कि क्रिटिकल केयर यूनिट, हमर लैब, ऑडिटोरियम, चैपाटी, आगर नदी का सौंदर्यीकरण, और बायपास सड़क जैसी योजनाएं भी ठंडे बस्ते में हैं।

रेल लाइन का सर्वे हुआ, लेकिन काम शुरू नहीं

छत्तीसगढ़ रेलवे कॉर्पोरेशन लिमिटेड ने वर्षों पहले 270 किलोमीटर लंबी इस रेल लाइन का सर्वे पूरा कर लिया था। प्रस्तावित लाइन तखतपुर, मुंगेली, लोरमी, पंडरिया, कवर्धा, खैरागढ़, छुईखदान, डोंडी लोहरा, राजनांदगांव और डोंगरगढ़ जैसे दर्जनभर विधानसभा क्षेत्रों से होकर गुजरेगी, जिससे इन क्षेत्रों की लाखों जनता को लाभ होगा। रेल मंत्रालय और राज्य शासन ने इस उद्देश्य से मिलकर छत्तीसगढ़ रेलवे कॉर्पोरेशन लिमिटेड का गठन भी किया, लेकिन अब तक न तो भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू हुई, न ही शिलान्यास के बाद कोई कार्य आगे बढ़ा।

राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी या प्रशासनिक उदासीनता

स्थानीय लोगों का मानना है कि यह महत्त्वपूर्ण परियोजना केवल इसलिए अटकी हुई है क्योंकि राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी है और जनप्रतिनिधियों की निष्क्रियता व अधिकारियों की लापरवाही इसमें स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है।

विकास की राह देखता क्षेत्र

अगर यह रेल लाइन बन जाती है तो इससे उद्योग, व्यापार, परिवहन और रोजगार की अपार संभावनाएं खुलती हैं। क्षेत्र की जनता को बेहतर कनेक्टिविटी मिलती और जीवन स्तर में सुधार आता। लेकिन अफसोस की बात यह है कि जिस योजना को 2023 तक पूरा करने का दावा किया गया था, वह आज भी शिलान्यास से आगे नहीं बढ़ पाई है। क्षेत्र के करोड़ों लोग आज भी इस लाइन पर ट्रेनों की सीटी सुनने का इंतजार कर रहे हैं।

Jay Johar

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